अनुभूति में अर्पण
क्रिस्टी
की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
कब्रिस्तान
ख़्वाब
दाग अच्छे हैं
सुखाने के लिए टांगा है दिल को
|
|
दाग अच्छे है?
और कितना धोना पड़ेगा इसे?
वैसे तो रोज़ धो कर,
मैल निकालता हूँ,
सुखाता भी हूँ…
पर सूखते सूखते
लग ही जाती है,
आसपास की हवा,
और...
दाग तो उस पर भी लगे होते है...
आसान भी तो नहीं
जिस्म से अलग कर के
इसे रोज़ धोना,
आँखों में फूटते हुए
झरने से...
कितना साफ़ रखते हैं आप इसको,
वैसे तो कोई देखता नहीं...
पर,
रूह के मुआमले में,
कैसे कह दूँ मैं,
कि
"दाग अच्छे हैं"?
२१ नवंबर २०११
|