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नहीं आने के लिए कहकर

नहीं आने के लिए कह कर जाऊँगा
और फिर आ जाऊँगा

पवन से, पानी से, पहाड़ से
कहूँगा-- नहीं आऊँगा
दोस्तों से कहूँगा और ऐसे हाथ मिलाऊँगा
जैसे आख़िरी बार
कविता से कहूँगा-- विदा
और उसका शब्द बन जाऊँगा
आकाश से कहूँगा और मेघ बन जाऊँगा
तारा टूटकर नहीं जुड़ता
मैं जुड़ जाऊँगा
फूल मुरझा कर नहीं खिलता
मैं खिल जाऊँगा

हर समय 'दुखता रहता है यह जो जीवन'
हर समय टूटता रहता है यह जो मन
अपने ही मन से
जीवन से
संसार से
रूठ कर दूर चला जाऊँगा
नहीं आने के लिए कहकर
और फिर आ जाऊँगा।

२७ अप्रैल २००९

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