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अनुभूति में भारती पंडित की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
गरीब की लड़की
बिटिया की विदाई पर पिता का पत्र
सपने
औरत हूँ मैं

 

बिटिया की विदाई पर पिता का पत्र

मेरी नन्ही कली
अभी कल ही की तो बात है
परी सी आई थी आँगन में मेरे
जीवन को नंदनवन बनाने
तुतलाते शब्दों से कानों को
अमृतपान कराने
अभी कल ही की तो बात है

तेरी खिलखिलाहटें जो जगाती थी घर को
तेरी अठखेलियाँ जो मोहती थी मन को
तेरा रोना- हँसना रूठना -मनाना
मानो जीवित हो जाता था घर
अभी कल ही की तो बात थी

बढ़ाने लगी तू पुष्पलता सी
रिश्तों के नए रंग सुवासित करती
कभी दोस्तों सा अधिकार जताती
कभी माँ सी डाँट लगाती
कभी बच्ची सी मचल भी जाती
अभी कल ही की तो बात है

आज विदाई की इस बेला में
तेरा पिता निस्तब्ध अकेला है
ओंठों पर है आशीषों की झड़ी
आँखों में स्मृतियों का मेला है
आज जो हुई पराई रौनक थी मेरे घर की
हाँ अभी कल ही की तो बात है

४ अप्रैल २०११

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