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अनुभूति में दीपक राज कुकरेजा की रचनाएँ-

कविताओं में-
एक पल में

कविता

 

एक पल में

एक पल में सुनहरा ख़्वाब
अगले पल ही सामने खड़ी
दिल दहलाने वाली हक़ीक़त
एक पल में मिलें दोस्त
अगले पल ही दुश्मनों से
होता है सामना।
एक पल लगता है विश्वास का
अगले पल ही मिलती बेवफ़ाई
एक पल में मिलता वादा
दूसरे पल ही होता धोखा
आदमी को खुशफ़हमी है
अपने चलने की
जबकि जीता है समय खुद
पल-पल में बँटकर
ऐसा लगता है समय
आदमी की जायदाद है
फिर भी वह पकड़ नहीं पाता
वह उसका एक पल भी
हो जाती है पूरी ज़िंदगी
पलों साथ जीते हुए
यह सोचते हुए कि
हमने उन्हें जीवन दिया
एक समय है जो बहता जाता है
आदमी है कि उसे ढोता जाता है
अपने होने के भ्रम में

समय और पलों के खेल को
जो समझ पाते है
वह ढोते नहीं किसी पल को
जीते है जीवन अपनी ही अदा से।

09 फरवरी 2007

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