अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में धनपत राय झा की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
डगर

गीतों में-
पापी पेट

 

पापी पेट

पापी पेट कहाँ भर पाता?
टेके घुटने कितनी पीड़ा दंश न मुख से कहने पाता
पापी पेट कहाँ भर पाता?

समझोते के हर छिलके में, मुई! विवशता आँके।
फटे वसन की उधड़न में से, मुआ गगन भी झाँके।।
आँगन सा लख नंगा जीवन, ठठियाते हैं लोग।
आहत जर्जर बंदी भोगता, आयु के हर रोग।।
उपचारों के नारों बेबस, जी नहीं, मर नहीं पाता।
पापी पेट कहाँ भर पाता?

तिनके तिनके लिया सहारा, भँवर लहर में दौड़ा।
पत्थर की मूरत को झुक, भगवान बना कर छोड़ा।।
सोते जगते स्वप्न निरंतर, कोर के शालीग्राम।
झिड़की ढोता बना पशुवत, ताड़न उधड़ी चाम।।
ऋण के रण में प्यासी आशा, तृष्णा ढाढस पाता।
पापी पेट कहाँ भर पाता?

तिनके तिनके बिनते बिनते, जोड़ रहा विश्वास।
बिखर गया था महज घरोंदा, सिकता के अभ्यास।।
ज्वाल माल पर स्वयं सुलगता, क्षुब्ध बना हूं छार।
पिंजर के पंछी सा व्याकुल, पकड़ रहा आधार।।
क्रांति की हूं कसक, करूं क्या? क्लांति मिटा नहीं पाता।
पापी पेट कहाँ भर पाता?

१ मई २००४

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter