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अनुभूति में दिनेश कुशवाह की रचनाएँ—

छंदमुक्त में
इसी काया में मोक्ष
दाम्पत्य के लिये प्रार्थना
रात के सफर में

 

दाम्पत्य के लिए प्रार्थना

दिन भर इतने लोगों, इतनी चीज़ों
और इतनी बातों का
खयाल रखना पड़ता है कि
अपना खयाल आते आते
थकान लग जाती हैं
ऐसे में एक दूसरे का खयाल रखने के लिए
याद दिलाना पड़ता हैं।
प्रेम के लिए सबसे कम समय हैं
हमारी दिनचर्या में
ज़रूरी है हर काम और उसका समय पर होना
यहाँ तक कि शाम नहीं तो सबेरे
सब्ज़ी लाये बिना भी काम नहीं चलता
बच्चों की फीस भरना तो भूला ही नही जा सकता
आगंतुक से बातें करना और उसे चाय पिलाना भी
नहीं टाला जा सकता सिवाय प्रेम के
जिसे टाला जा सकता है समय मिलने तक
प्रेम किये बिना भी
चलायी जा सकती है गृहस्थी की गाड़ी
लम्बे समय तक
जबकि एक छोटी सी चीज़ भी छोड़ी नहीं जा सकती
अधूरा लगता है उसके बिना जीना
जैसे एक वक्त भी नमक के बिना खाना
लगता है बेस्वाद।
मुंह अंधेरे से लेकर गई रात तक
बहुत सारे हिसाब किताब हैं
इसी में है यदा–कदा काया का गणित भी
ओह! कितना त्रासद हैं
प्रेम को एक काम की तरह निपटाना
और हाथ झाड़कर खड़े हो जाना
ओह!! प्रेम करने के लिए करना
कितना त्रासद है।
फिल्म–दफ्तर–पड़ोसी–नेता–सरकार–पार्टी
यहाँ तक कि नराधम किस्म के लोग भी
किसी भी समय हो सकते हैं वार्तालाप के विषय
सिवाय प्रेमालाप के
यहाँ तक कि टुच्ची बातें करने पर भी
अघोषित पाबंदी नहीं हैं।
पालते हुए दुनिया देखने का दंभ
साप्ताहिक भविष्यफल में
पढ़ने को मिलता है दाम्पत्य सुख
साफ सफाई धुलाई–सिलाई सब ज़रूरी है
मन के दर्पण की धूल कौन देखता है?
कितनी बार मन हुआ है कि सुबह सुबह
मुँह धोकर पोंछूँ उसके आँचल में
या वही कभी दुलारकर पोछ दे
मेरी आँखों के कोर
पर रोज़ ज़रूरी है झाडू–पोछा
अभी इस फालतू काम के लिए
समय नहीं है।

८ नवंबर २००३

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