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अनुभूति में दिविक रमेश की रचनाएँ-

अंजुमन में
रात में भी
आए भी तो
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एक बची हुई खुशी
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रहस्य अपना भी खुलता है
सबक
जीवन

क्षणिकाओं में
हस्तक्षेप

संकलन में
जग का मेला- चीं चीं चूं चूं

  एक बची हुई खुशी

एक बची खुची खुशी को थैले में डाल
जब लौटता है वह उसके सहारे
तो ज़िन्दगी का अगला दिन
पाट देता है उसकी रात रंगीन सपनों से
- सपने जो अधूरी आंकांक्षाओं की पूर्ति ही नहीं
एक संकल्पित भविष्य भी होते हैं।

समझौते पर विवश आदमी से
बस इतनी ही प्रार्थना है मेरी
कि बचे न बचे कुछ
पर बची रहे हर शाम उसके पास
एक थोड़ी-सी खुशी - उसका सहारा
जिसे थैले में डाल
लौट सके वह घर डग भरता
उत्सुक

कि बचे रहें उसके पास भी कुछ सपने
कि बीते न उसकी रात सूनी आँखों में।

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