अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में गीता शर्मा की कविताएँ—

छंदमुक्त में-
कबिरा के कबिरा रहे
खुश है हरिया
जानते हो पिता
बुदापैश्त पर कोहरा

 

खुश है हरिया

खुश है हरिया
आए हैं राजा उसके दरवाजे
आज।

राजा ने छू लिए
बस्साते बिवाई फटे पाँव
अम्मा के आज।
चुम्मा लिया छोटे से कलुआ का
जीमेंगे राजा उसके दरवाजे
आज।

पगलाया बौराया हरिया
दे गए गगरा से लोटा तक
सरपंच हरिसिंह आज।
पीठ पर हाथ धर
बोले थे हरिसिंघ
हरिया,
सुध लेना हमारी भी
आएँगे राजा आज।

राजा बड़े सीधे थे
राजा बड़े साधे थे
माँगा भी तो क्या- भोट
दे आया हरिया- भोट
कौन बड़ी बात
इत्ते बड़े राजा माँगा तो भोट
दे आया हरिया कौन बड़ी बात
जीत गए राजा
हरिया खूब नाचा
पूरा मोहल्ला
झूम-झूम नाचा।
जीत गए राजा
आज।

अब तो आएँगे राजा
रोज-रोज पानी-बूनी लाएँगे राजा
अम्मा के पाँव छू
कलुआ का चुम्मा ले
जीमेंगे राजा उसके दरवाजे।
*
नहीं आए राजा
खटिया छोड़
कुर्सी पर बिराजे हैं जबसे
ऊपर उठ गई कुर्सी
तबसे।

हरिया ने देखा, कलुआ ने देखा
अम्मा ने देखा।
देख-देख राजा को
अकड़ गई गटई
झूर गई आँखें
ऊपर हैं राजा अब
बहुत-बहुत ऊपर।
थक गया हरिया
झुक गई गटई।

समझाया अम्मा को
राजा हैं, मालिक हैं, बहुत बड़े मनई हैं।
बड़े लोग - बड़ी बात।

५ जुलाई २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter