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अनुभूति में गोविन्द कुमार गुंजन की कविताएँ—

छंदमुक्त में-
उन सबके जोड़ में
एक माचिस के खोके मे
यहाँ से पारदर्शी
सिल पट्टी

 

यहाँ से पारदर्शी

मैं जिस सेटेलाइट से
दुनिया को देखता हूँ, वहाँ से
सभी कुछ पारदर्शी हो जाता है,
मुझे
एक्स-रे-रिपोर्ट की तरह
सभी चीजों का कंकाल साफ नजर आता है
बहुराष्ट्रीय-बहुविज्ञापित कंपनियों के
महँगे से महँगे सूट पहनने के बावजूद
आदमी नंगा नजर आता है वहाँ से
ऐसा नहीं कि
वहाँ से मैं कोई प्रेम दृश्य नहीं देखना चाहता
मगर
अपने चूजों के लिए चुग्गा लेकर जलती हुई चिड़ियों
की बजाय
मुझे वो मीठी बोली वाली कोयल मिलती है
जो अभी-अभी अपने अंडे,
किसी कौवे के घोंसले में रखकर आयी है
ऐसा नहीं कि
वहाँ से सैकड़ों सफेद चरती हुई भेड़ों के झुंड वाले
उस गड़रिये को नहीं देखना चाहता
जो किसी टीले पर बैठकर
बड़ी मस्ती से बजा रहा है अपनी बाँसुरी
मगर उसे देखकर अक्सर मैं चौंक जाता हूँ
यह वही आदमी है
जिसे भेड़ें अपनी हरी घास के लिए
निरंतर देती रहती हैं धन्यवाद
बगैर यह जाने कि
यह सिर्फ उनकी खाल ही खेंचकर तृप्त नहीं होगा
यह उनके बाल भी खेंचता रहेगा हर साल
वह उन्हें
मरने से पहले मार डालेगा
भेड़ों को पता नहीं
वह उन्हें सस्ती घास को
महँगे मांस में तब्दील करने वाला
उपकरण बना चुका है
मैं देखता हूँ
कविता के सेटेलाइट से यह दुनिया
जहाँ से कभी कुछ पारदर्शी हो जाता है।

२५ नवंबर २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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