अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में हेमन्त कुकरेती की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
इसीलिये
कविता की किताब
देखकर समय का अंधकार
रंग

 

देखकर समय का अंधकार

खूब चलने के बाद मैं और चलता हूँ
रुकने के बाद भी मैं रुकता नहीं
जो चल रहा है मैं उसमें हूँ
पृथ्वी में मेरा होना दर्ज़ है ऐसे ही सूर्य के
चलने का दस्तावेज़ मेरे उल्लेख के बिना अधूरा है
नक्षत्र जो विश्वास दिलाते हैं
अंधेरे को पीकर रोशनी फैलाने का
जमे हुए अंधकार में, मेरे साथी हैं
जो दिशा उजली है
मेरी आँख है भेदती है अंधेरे की चट्टान
मेरी उंगलियों पर गिनों सृष्टि के प्रकाश-वर्ष
दो फसलों के बीच जो बचे हुए दाने हैं
मरी भूख है तो उन्हें कहा जाता है अन्न
हारते नहीं मौसम से,
सुखाकर जीवन-रस बनते हैं बीज
गलाकर काया
प्रकाशित करते हैं पृथ्वी की हरी रोशनी
हाहाकार में जीवन के निशान बचाने के लिए
मैं अपने समय मैं लड़ता हूँ
यह घर में
आदमी को बचाए रखने के लिए जरूरी है
मैं जानता हूँ अंधेरे में जीने की मजबूरी
चलकर आता हूँ मैं अपने सुरक्षित एकांत से
और चला जाता हूँ दूर
वहां होता हूँ सबके पास
चोट खाने पर मुझे दर्द होता है
सोचता हूँ अपने रोने के साथ ही कभी-कभी
देख लेने चाहिए आँसू जो बहते हैं किसी के अंधेरे में
सूखने से पहले सुन लेनी चाहिए उनकी आवाज़
मैं देखता हूँ अपने समय का अंधकार
और यह देखना जानना है उजाले को
मेरी हँसी रुलाई से उपजी है
मैं उन सारी लकीरों को बदल देना चाहता हूँ
जिनके अर्थ डरे हुए हैं विवश....।

११ फरवरी २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter