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अनुभूति में जानकीवल्लभ शास्त्री की रचनाएँ—

ग़म न हो पास
कुपथ रथ दौड़ाता जो
बौराए बादल?

 

ग़म न हो पास

ग़म न हो पास इसी से उदास मेरा मन।
साँस चलती है, चिहुँक चेतता नहीं है तन।

नींद ऐसी न किसी और को आई होगी,
जाग कर ढूँढ़ती धरती कहाँ है मेरा गगन।

मौसमी गुल हो निछावर, बहार तुम पर ही,
क़ाबिले दीद ख़िज़ाँ में खिला है मेरा चमन।

भूलकर कूल ग़र्क़ कश्तियाँ हुईं कितनी,
लौट मझधार से आया चिरायु ख़ुद मरण।

बुलबुलों ने दिया दुहरा कलाम ग़ंचों का,
गंध बर मौन रहा आह! एक मेरा सुमन।

24 अक्तूबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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