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                  सात मुक्तक 
                  एक 
                  देश का हाल मत पूछो। 
                  कोई सवाल मत पूछो।। 
                  तुम बहता लहू देखकर। 
                  कौन बेहाल मत पूछो।। 
                  दो 
                  धूल-धुआँ है, महानगर है। 
                  आपाधापी डगर-डगर है।। 
                  भीड़भाड़ बेगानापन है। 
                  रिश्तों में भी घुला ज़हर है।। 
                  तीन 
                  घर-घर में संताप भरा है। 
                  द्वार अनमना डरा-डरा है।। 
                  किस घट से हम प्यास बुझाएँ। 
                  हर घट प्यासा ज़हर-भरा है।। 
                  चार 
                  डूबे तो मझधार बहुत हैं। 
                  दु:ख के पारावार बहुत हैं।। 
                  जो हँसकर के जीना चाहे। 
                  खुशियों के उजियार बहुत हैं।। 
                  पाँच 
                  उपाय सब बेकार हुए। 
                  डाकू पहरेदार हुए।। 
                  कानून कुचलने वाले। 
                  आज अलंबरदार हुए।। 
                  छे 
                  सँभालकर तुम मेरा यह खत रखना। 
                  दिल में कल भी वही मुहब्बत रखना।। 
                  लिख नहीं सका था मैं इस पर कुछ भी। 
                  कसम तुम्हें इसका मलाल मत रखना।। 
                  सात 
                  जो तुम चाहते हो मुस्काना। 
                  मन अपना पावन कर लो।। 
                  बेबस के आँसू पोंछो। 
                  जीवन मन-भावन कर लो।। 
                  २४ जुलाई २००५  |