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अनुभूति में कीर्ति चौधरी की रचनाएँ-

कविताओं में-
आगत का स्वागत
कंपनी बाग
केवल एक बात थी
बरसते हैं मेघ झर-झर
मुझे फिर से लुभाया
वक़्त
 

 

बरसते हैं मेघ झर-झर

भीगती है धरा
उड़ती गंध
चाहता मन
छोड़ दूँ निर्बंध
तन को, यहीं भीगे
भीग जाए
देह का हर रंध्र

रंध्रों में समाती स्निग्ध रस की धार
प्राणों में अहर्निश जल रही
ज्वाला बुझाए
भीग जाए
भीगता रह जाए बस उत्ताप!

बरसते हैं मेघ झर-झर
अलक माथे पर
बिछलती बूँद मेरे
मैं नयन को मूँद
बाहों में अमिय रस धार घेरे
आह! हिमशीतल सुहानी शांति
बिखरी है चतुर्दिक
एक जो अभिशप्त
वह उत्तप्त अंतर
दहे ही जाता निरंतर
बरसते हैं मेघ झर-झर

२३ जून २००८

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