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अनुभूति में केशरी नाथ त्रिपाठी की रचनाएँ

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क्रम

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क्रम

सात घोड़ों पर सवार
वह रोज़ आता है
और चला जाता है
उजाला अँधेरे में
अंधेरा उजाले में
समा जाता है
पूछो यह सवाल
कल के सवेरे से
कि आने और जाने का यह क्रम
क्यों चला आता है
यह संघर्ष है या पलायन परस्पर
धुरी पर धरा हो, या हो दिवाकर
रूकता नहीं यह चलता निरंतर
मुझे भी सुनाता, दिखाता बुला कर
कैकेयी का हठ और सीता का क्रंदन
शय्या शरों की, गीता का दर्शन
तन्द्रा को तोड़ कर
निद्रा को छोड़कर
जब मैं खड़ा होता हूँ
तो सुनहरे मृगछौनों की भीड़ में
मेरा गाँडीव खो जाता है
शायद किसी कृष्ण की तलाश में
यह क्रम बार बार आता है।

१५ दिसंबर २०००

 

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