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अनुभूति में कवि कुलवंत सिंह की रचनाएँ-

अंजुमन में-
तप कर ग़मों की आग में

हाइकु में-
सत्रह हाइकु

गीतों में
छेड़ो तराने
प्रकृति
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र
प्रणय का गीत
वंदना

 

हाइकु

ज़िंदगी एक
ग़मों का दरिया
बस तैरिये

बेटी का जन्म
मातम है घर में
पराया धन

गरीबी पाप
मौत से बदतर
जीना दुश्वार

सच की राह
चलना है मुश्किल
काँटों से भरी

निराशा छायी
उजाले छिप गए
क्षितिज तक

स्वप्न सजाओ
दिल को बहलाओ
क्या जाता है

हसरत है
तुम्हारी चाहत की
मिलो न मिलो

दिल का दर्द
दिलवाले ही जाने
बिछुड़ कर

अपनी धरा
बिछुड़ कर रोता
माँ तुल्य गोद

क्रूर इंसान
विलुप्त संवेदना
गला काटता

भली लगती
प्यार में इसरार
इंतज़ार है

कभी तो मिलो
अपना कह कर
गर्मजोशी से

जमीं बिछड़ी
अपना किसे कहें
घरौंदे ढहे

परदेश है
गाली भी दें तो किसे
अपना कौन

दिली जज्बात
नम हो गई आँखे
याद जो आई

अश्क बहाऊँ
कौन भला अपना
पोंछेगा कौन

अंकुर फूटा
प्रकृति का संदेश
नवजीवन

16 अक्तूबर 2007

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