अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मधु मोहिनी उपाध्याय की रचनाएँ

गीतों में—
क्या बतलाएँ दिल की बातें
थक कर बैठ न जाना राही
बेटियाँ
सपने में रंग गई कान्हा के रंग

अंजुमन में--
सागर खारा पाया क्यों

हास्य व्यंग्य में—
मधु की जगह माध्वी बन जाएँ
कुत्ता मंद-मंद मुस्कान फेंकता

 

थक कर बैठ न जाना राही

थककर बैठ न जाना राही, अभी न आया गाँव है
माना तपती धूप है जीवन, मिलती फिर भी छाँव है
1
धूप में जितना चल पाओगे,
खुद में उतना बल पाओगे,
जो भी अमर हुआ है जग में, छिला उसी का पाँव है
थककर बैठ न जाना राही, अभी न आया गाँव है
11
आस – निरास भरा जीवन है,
हानि-लाभ तो आजीवन है,
जीवन की चौसर पर सबका अपना-अपना दाँव है
थककर बैठ न जाना राही, अभी न आया गाँव है

1
ज्यों – ज्यों सीढ़ी चढ़ जाओगे,
संदेहों के गढ़ पाओगे,
जग का हर इक रिश्ता-नाता 'भ्रम-कागा' की काँव है
थककर बैठ न जाना राही, अभी न आया गाँव है

11
जग में मोती चाहो पाना,
गहरे सागर मथते जाना,
संयम से जीवन में मिलता हर अभिलाषित ठाँव है
थककर बैठ न जाना राही, अभी न आया गाँव है

1 सितंबर 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter