अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में नेहा शरद की रचनाएँ -

छंदमुक्त में--
खेल
जिंदगी का हिसाब
तीन परिस्थितियाँ
हाँ यह ठीक है


  तीन परिस्थितियाँ


हाँ, यह सच है,
आँखों पर पट्टी बाँध कर ही
अपने पति को देखा था मैंने,
किन्तु विवाह पूर्व ,
किसने बाँधी पट्टी,
मेरी परिस्थितियों पर...


माँ, पहले भी तुमसे कहा
जो कुछ भी मैने सहा
कई दफे माँगा ,
आसरा तेरी गोद का,
पर आज तो अति हो गयी,
और तू फटी
मुझे फिर 'गति' मिल गई



यह मृग नयन, यह कंचन देह,
बदली से मुख पर केश सघन,
हृदय में बसा एक प्रेम तुम्हारा,
गोद मैं बेटा भारत हमारा
हा, दुष्यंत !
रहा मुझे फिर भी एक मुद्रिका
राज-चिन्ह का सहारा...

१५ नवंबर २०१०

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter