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अनुभूति में निशा कोठारी की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कैद
प्रेम त्रिकोण
फतेह
मौन अभिव्यक्ति
त्रासदी

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मौन अभिव्यक्ति

ख़ुशी या गम
सुख या दुःख
एक ही भाव के दो छोर
अतिरेक दोनों का ही
खींचता है हमें
भीतर की ओर
व्याकुलता जब घेर लेती है
चहुँओर से
फँस जाता है जब मन
आसक्ति के भँवर में
डोलने लगते हैं विचार
एक के बाद एक लहर में
संवेदनाओं के सागर में
जब उठता है ज्वार
एहसास जब लाँघ जाते हैं
चरम सीमाएँ
भावनाएँ जब पहुँच जाती हैं
शीर्ष पर
तब सोच के परे
पहुँच जाते हैं संवाद
तब अक्षर हो जाते हैं गौण
तब शब्द हो जाते हैं निशब्द
तब सारे स्वर साध लेते हैं मौन
एक शांत गूँज
बनती है ज़रिया
और
अभिव्यक्ति चुपचाप
बह जाती है
आँखों के रास्ते!

१५ सितंबर २०१५

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