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अनुभूति में प्रेमचंद्र सक्सेना 'प्राणाधार' की रचनाएँ -

कविताओं में
तक़दीर

संकलन में
नव वर्ष अभिनंदन-नववर्ष

  तकदीर

सब कुछ है तकदीर नहीं है
दिल तो मिला विरासत में पर
मिला अभी दिलगीर नहीं है।

जो आए थे बनकर अपने
चले गए वे जैसे सपने।
अपना जिसे बनाऊँ ऐसी
कोई भी तस्वीर नहीं है।

दिल वालों के देखो आलम
दिल के खाली हैं सब कॉलम।
दामन को तो पकडूँ लेकिन
कोई दामनगीर नहीं है।

कोई ऐसा मर्द नहीं है
जिसके दिल में दर्द नहीं है
हर धड़कन के साथ मिलाकर
गाऊँ ऐसी पीर नहीं है।

दिल की पीर बताऊँ कैसे?
दिल को चीर दिखाऊँ कैसे?
दिल की करूँ वसीयत कैसे
दिल, दिल है जागीर नहीं हैं

कोई क्या समझे मजबूरी
क्यों है उससे इतनी दूरी
तन को तो समझाऊँ लेकिन
मन तो हुआ फकीर नहीं है।

तुलसी, सूर, जायसी, मीरा
कवि रसखान हरें मन पीरा।
जीवन दर्शन गाए कैसे
'प्राणाधार' कबीर नहीं है।

१६ फरवरी २००५

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