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अनुभूति में प्रभा शर्मा की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
आज
गुपचुप गुपचुप
पेड़, तुम सचमुच हो बड़े
यह सृजन
ये ऊँचाइयाँ

 

यह सृजन

दूर तक फैला वीरान
सफ़ेद बरफ़ सा
शांत
प्रश्नों-भरी ठूँठ की
उदास छोर से
ताकता पल्लव
एकाकी नीरव
दूर तक लहराती नदी का गीत सुनता
विजन मौन
रात की ख़ामोशी मे
तारों से बातें करने को आतुर
चाँद संग मुस्काता
धीरे से फुसफुसाता
कितना मधुर
कितना सरस
अहा ! जीवन !
यह सृजन !

२१ जनवरी २०१३

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