अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में प्रताप सहगल की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
अहमस्मि
आज के संदर्भ में कल
दुरमुट
रामकली
हदों से बाहर भी होता है शब्द

 

रामकली

बहुत सालों के बाद
आज इस चेहरे को देखा है
दिमाग पर काफ़ी दबाव देने के बाद याद आया
इसका नाम रामकली है।

रामकली उन दिनों
लहलहाता खेत थी
एक भरा पूरा गुलदस्ता
और जिन्दगी को जीने की
एक अदम्य लालसा थी उसकी आंखों में।

खनखनाती हंसी बिखेरती
महफ़िलों की रौनक रामकली
आज बाजार में सूखी ईख बनी खड़ी है
चेहरे पर गुलाबीपन झड़ गया है और
सुरमई दैत्य फ़ैल गया है पूरे बदन पर
दांतों पर जमी मोटी मैल की परत
रामकली की राम कहानी कह रही है।

उसके बालों की चमक न जाने कहां दुबक गई है
और गालों के गहरे गड्ढे
आंखों के नीचे काली झाइयां
लगता यूं है
जैसे रामकली अपनी तीस साल की
जिन्दगी में ही
कई जीवन जी चुकी है।

और अब वो केवल
अपने छः बच्चों के वास्ते
राशन पानी बटोरने के लिये ही
घिसट रही है।

आपने भी कहीं न कहीं जरूर देखा होगा
रामकली को बाजार दूकान घर
या अपने ही घर में
दूर से ही आसान है उसकी पहचान।

उस का दुर्भाग्य यह है
कि न वो अब पहली जिन्दगी में लौट सकती है
और न ही अपने बच्चों को
दे सकती है
सभ्य दुनिया का परिवेश।

१४ फरवरी २०११

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter