अनुभूति में
पृथ्वीपाल रैणा
की रचनाएँ-
1
छंदमुक्त में-
अंतर्मुखी अँधेरे बहिर्मुखी उजाले
एक खिलौना मैं
दिल
मेरी धरती मेरा आसमान
साँसों के समंदर में
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साँसों के समंदर में
साँसों के समंदर में
मेरे हिस्से की जो चंद साँसें हैं
उन्हें जी लूँ फिर सोचूँगा
कितना लम्बा रास्ता
अभी और तय करना है
कहने को तो
यह जीवन मेरा है
लेकिन इसमें मैं कहाँ हूँ
मेरे करने से यहाँ
कुछ नहीं होता
जो भीतर है भीतर ही रहता है
जो बाहर है कभी भीतर नहीं जाता
संसार कितना भी लुभावना हो
संसार ही बना रहता है
'मैं' हो नहीं
सकता
'मैं' होने का
केवल आभास होता है
इसी आभास को हम 'मैं' मान कर
जीवन की उलझी हुई राहों में
भटकते भटकते उम्र बिता देते हैं
होने न होने
पाने और खोने में
साँसों का हिसाब खो जाता है
इसीलिए सोचता हूँ
अपने हिस्से की जो
चंद साँसें हैं
उन्हें खुल के जी लूँ
फिर फ़ुर्सत मिली तो
हिसाब लगा लूँगा
क्या पाया और क्या खोया।
१ जुलाई २०१६ |