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					बारह हाइकु 
 रात लेटी है
 अँधेरा बिछाकर
 ओढे चाँदनी।
 
 बडा सुकून
 खूँटी पै टँगे वस्त्र
 अम्मा बाबा के।
 
 पीपल गाछ
 फडफडाते पात
 सुने तो कोई।
 
 रही कुतर
 वक्त की गिलहरी
 डैने शाम के।
 
 मृग बौराया
 रास्ता भूली नदिया
 तुम घर में।
 
 अंधियारे की
 फलियाँ छीलती है
 कोने में भोर।
 
 बैठे मूढे पे
 गुड गुडाते हुक्का
 बाबा जी मेघ।
 
 अकेली बैठी
 बुनती रही झील
 ख्वाब ही ख्वाब।
 
 सोई है धूप
 पंखा झलती हवा
 पेडों की छांह।
 
 आया जो जेठ
 पियरा गए गाछ
 दुखी महुआ।
 
 लो शाम हुई
 यादों के पंख लगे
 महका घर।
 
 हो गया मन
 एक पूरा गगन
 यादें चिडियाँ।
 
 १६ अप्रैल २००५
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