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अनुभूति में डा शीला मिश्र की कविताएँ-

छंदमुक्त में-
माँ

संकलन में-
ममतामयी-स्नेहपूर्ण विस्तार
वसंती हवा- सेमल के गाँव में

 

माँ

जमीन पर फैली
कुम्हलाई लता सी माँ
कभी उन्हें सहारा था
वृक्ष से मजबूत पिता का
जब
लता में खिलते थे
रंग बिरंगे फूल
वृक्ष पर बसेरा लेते थे
चहचहाते पक्षी
उसके नीचे विरमते थे
कितने ही पाहुन
फिर समय के बहाव में
पिता
न जाने कहां चले गये
रह गयी टूटी लता सी माँ
अपने ही फूलों से कुचली हुई
हर समय प्रतीक्षा करती है
चिडियों की चुन चुन की, पाहुन की
जानती हैं वे
कि सूखा वृक्ष किसी को छाया नहीं दे सकता
फिर भी तैयार नहीं हैं
पराजित होने को
अंतिम क्षण तक।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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