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अनुभूति में शुभम तिवारी शुभ की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
घर
जले हुए मकान की खिड़की पर
टूटे हुये मकान से
बाहर आओ
मैं और बंजारा

 

टूटे हुए मकान से

टूटे हुये मकान से ही
ईंट निकलती है
ज़रूरत के लिये

और ईंट दर ईंट
निकाल ले जाता है
हर कोई टूटे मकान से

जैसे टूटे लोगों से लोग
निकाल लेते हैं मतलब

हर कोई उसे इस्तेमाल
करता जाता है
अपने लिये

टूटा मकान ईंट दर ईंट
खत्म होता जाता है

और टूटा हुआ इंसान
एक के बाद एक धोखे से
खोखला होता जाता है
और जीते जी खत्म हो जाता है

१ अक्तूबर २०१८

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