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अनुभूति में शुचिता श्रीवास्तव की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
इस बसंत में
प्रेम की तलाश
प्रेम खदबदाता है
प्रेम एक चुटकी खुशी
मुट्ठी भर तुम्हारी याद

 

मुट्ठी भर तुम्हारी याद

मैंने रोपी है सूखी जमीन पर
मुट्ठी भर तुम्हारी याद
आकाश से ला ला कर
बो दिया है क्यारी भर बादल
मन भीगा भीगा सा है
शायद तुम्हीं ने
वहाँ रखा होगा सावन
हथेलियों की लकीरों में
छिपा है पीलापन
भर गये होगे
एक दिन तुम्हीं उनमें बसंत
हँसना तो बहुतों के साथ तय है
दूर कहीं भीगी मिट्टी में बैठकर
तुम्हारे कन्धों पर रखना है
आँख और मन भर रुदन
बोलना कभी नहीं खत्म हो पाता
तुम्हारी आँखों में रखने हैं
जरा से खामोश पल
मटके भर भर ख़ुशी उड़ेली जाती रही हमेशा
तुम्हारी हथेलियों में रखना है
सकोरा भर दुःख
मेला साथ साथ चलता रहा सदियों से
तुम्हारे कदमों में रखने हैं
कुछ एकांत रस्ते
बँधा है बहुत कुछ
बहुत सारे नियमों की गाँठ से
तुम्हारी उँगलियों को
खोलनी है हर नियम की गिरह
सूखी जमीन पर रोपी गयी याद
तुम्हें ही सींचनी होगी वक्त पर
बोये गये सारे बादलों को
तुम बरसा सकोगे न ...?

११ मई २०१५

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