अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में स्वर्णलता ठन्ना की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
इकरार
उदास शाम
प्रतिमूर्ति
बदलाव
सूरज

 

उदास शाम

उदास शाम
उतर आती है
हर रोज आँगन में
अपने स्याह आँचल में
लेकर कुछ पीले पड़े
तपती दुपहरी के फूल
घर लौटते
चहचहाते पक्षियों के
कुछ टूटे हुए पंख
तूफानों की सरपरस्त
हवा के झोंकों में
उड़ते कुछ घास के तिनके
और अलगनी पर सूखते
तार-तार होते
कपड़ों के पैबंद...

छोड़ जाती है
मेरे दरवाजे पर
तमाम दुपहरी की
खींझ, गुस्सा और
अकेलापन
और लौट पड़ती है
धानी चुनर ओढ़े
साँवली बदली के साथ
रात के गहरे अँधेरे में
और मैं
घड़ी की सुइयों से बनी
बुहारी से
सब झाड़ बुहार कर
लगा देती हूँ ढेर
अपनी बगीची में
और लाँघ जाती हूँ
शाम को
निशब्द, निर्विकार
बीत गये है
अनंत दिन
इसी तरह...

शाम हर रोज
आती है कभी
धुएँ के साथ,
रह-रह कर चमक उठती
चिंगारियों के साथ,
राख की उड़ती कालिमा,
पैरों की ठोकरों से
झरते साथ साथ
और मेरा मौन
बढ़ाता रहता है
शब्दों से अंतराल
कभी-कभी हो जाती हूँ
बुहारते दुःखों को देख
निष्चेष्ट
फिर सोचती हूँ
कभी तो आएगी
साँझ अपनी हथेलियों में
तितलियों के रंगों को दाब
तूफान के बाद आती
बारिश की नन्हीं बूँदों संग
कामना के बीज
मेरी बगीची में डाल
उम्मीदों की कलम बोने
तब मेरा मौन
आलाप में बदल जाएगा
और सुरों की विरासत में
एक अध्याय
जुड़ने को आतुर हो जाएगा
तब शायद
भोर की किरणें
आलोकित कर देगी
मेरी कोठरी के
धुंध भरे कोनों को...।

२३ जून २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter