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विस्तार

आकाश मेरे भीतर ही था
एक दिन मेरे मन का पंछी
खुले रोशनदान से उड़ान भर गया

समुद्र मेरे भीतर ही था
एक दिन मेरे मन की मछली
खुली खिड़की से गहराई में उतर गई

पहाड़ मेरे भीतर ही था
एक दिन मेरे मन का पर्वतारोही
खुले द्वार से निकल ऊपर चढ़ गया

बरसों तक मैं दो शब्दों के
बीच की ख़ाली जगह में
दुबका हुआ मौन था
एक दिन जाग कर
मैं कविता से निकला और
जीवन में भर गया

४ अगस्त २०१४

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