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अनुभूति में अमिताभ मित्रा की
रचनाएँ--

छंदमुक्त में--
ग्वालियर
ग्वालियर की बरसात
बसंत आया
पंद्रह अगस्त

 

 

 

ग्वालियर की बरसात

बेमौसम बरसात क्यों
बरसात तो बरसात ही है
बरसात को किसी ने आज तक रोका?
क्या आपने बरसात के बाद को देखा?
किले से पानी को गिरते देखा है?
हमने देखा
जब बरसात को रोकने
बुढ्ढ़े किले में भी दरार पड़ी
हमने देखा
बहुत पहले
मोरो ने जब पंख फैलाए
चिरोंजियो का आसमान बना
सूरज जाने किस गुफा में छिपा
और किले का किचड़
मेरे घरद्वार
लौट कर
फिर आया
फिर भिगोया
हमें
और
हमने देखा

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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