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अनुभूति में आरती पाल बघेल की रचनाएँ

छंदमुक्त में—
चलो खुशी ढूँढ लाएँ
तालमेल
नई सुबह

 

ताल मेल

जो मेघ प्रलय लाते हैं
वही देते हैं पीने को पानी
जो अग्नि बन भयदायिनी जंगल जलाती
उसी की रोशनी बन
किरण अँधेरे मिटाती
उसी की ताप में माँ रोटी बनाती
आभा में उसकी पूस की सर्दी भी
बिन बाधा के यों ही कट जाती
जहां जला कर ख़ाक कर देती है बिजली
वहीं कलकेंद्रों की धड़कन में
ये है हरपल बसी
सोचना अब हमको स्वयं है
कौन सा पासा सराहें
पहलू दो हरदम मिलेंगे
कौन सा कब काम लाएँ
सीमा निश्चित खुद ही है करनी
इस पार और उस पार की
समझ ही कुंजी है
रहस्य के हर द्वार की
जो बैठा ले ताल–मेल
प्रकृति के इस नियम से
वही है विजयी

९ जून २००६

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