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अनुभूति में डॉ. आशुतोष कुमार सिंह की रचनाएँ -

अंजुमन में-
अपने जिगर में
आज के ज़माने में

आदमी की भीड़ में
कभी शबनम
ज़िन्दगी और मौत
जिस जगह पर
तुम्हारा फर्ज़ है

दिल में आग
धूप में छत पर
प्यार में आशना
मत समझाओ

मैं समझता ही रहा
मौत की दहलीज़
मौत से जब भी सामना होगा
लम्हा लम्हा
लिख सके तारीख़

साथ साथ चलो
होने वाली है सहर

कविताओं में
मेरा साया
सबकी बातें झूठी

संकलन में-
दिये जलाओ-घर में दिवाली हो
दीवाली आई

  लिख सके तारीख

लिख सके तारीख पागल ज़ख्म गहरे चाहिये।
मेरे घर के सामने गुंड़ों के पहरे चाहिये।।

ये सियासत है यहाँ की जंग थोड़ी हट के है,
जीतनी है बाजियाँ तो सिर्फ़ मोहरे चाहिये।

मत कहो तुमको यहाँ के लोग सुन सकते नहीं,
तुमको सुनने के लिये गूँगें और बहरे चाहिये।

काफिले कितने जुटा लो ज़िंदगी भर दोस्तों,
आखिरी लश्कर में केवल चार चेहरे चाहिये।

फूल की कीमत नहीं है देवता के सामने,
उनके खातिर सोच लो मोती सुनहरे चाहिये।

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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