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                   अनुभूति में 
					चंद्र शेखर त्रिवेदी
					की रचनाएँ— 
					 
					हास्य व्यंग्य में- 
					
					कवि को श्रोता 
                  सम्मेलन का मंच 
                  तुकबंदी पाबंदी 
					 
					छंदों में- 
					अपनी बात 
                  
					अर्जुन का मानसिक द्वंद्व 
					
					मौन मधुशाला  
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					कवि को श्रोता
					
                     
					कवि को श्रोता चाहिए, औ ब्राह्मण को जजमान। 
					ब्राह्मण जो कविता कहे, तो श्रोता ही जजमान।। 
					श्रोता ही जजमान, सुनै हो तन्मय जब तक। 
					कवि की बाँछें खिलें, चित्त हो गद्गद् तब तक।। 
					दान दक्षिणा देने वाला, जजमान ब्राह्मण को प्रिय लगता। 
					मुक्त प्रशंसा करने वाला, प्रिय है वैसा ही कवि को श्रोता।।  
                  
                    
					तुकबंदी पाबंदी 
                  
                    हम तुकबन्दों की दुनिया में, 
					बस एक यही है पाबन्दी। 
					श्रोता मिल जाए अगर आधा, 
					कविता कह डालो बस जल्दी ।।१।।  
					 
					मौका बेमौका, समुचित अनुचित, 
					की बात बाद में देखेंगें। 
					पहले मन में जो घूम रहा, 
					वह ख्याल सभी से कह लेंगें ।।२।।  
                    
                  
                  
                     
                  
                    सम्मेलन का मंच
					
					 
					इस सम्मेलन के मंच पर, 
					बड़ी हिम्मत से आया हूँ। 
					सुनाने आपको कविता, 
					पुलिन्दा ले के आया हूँ।।१।। 
					 
					सभा के पति महोदय ने, 
					समय कंजूसी से है बाँटा। 
					माइक से चिपके ही न रहना, 
					सख्ती से मुझे डाँटा ।।२।। 
					 
					समय की है कहाँ तंगी, 
					ये सारी शाम सब अपनी। 
					इज़ाज़त हो तो दिल खोलूँ, 
					तमन्ना ले के आया हूँ ।।३।। 
					 
					बहुत बेदर्द यह दुनिया, 
					हमेशा कवि है यह सुनता। 
					बहुत बकवास कर ली, 
					चुप रहो बस, थक गई जनता ।।४।। 
					 
					मुकर्रर, शब्द छोटा सा मगर, 
					बड़ी आवाज़ करता है। 
					सभी कवियों का दिल छू कर, 
					हौसला जी का भरता है ।।५।।  
					 
					मुकर्रर की न कंजूसी, 
					करो तुम ओ चतुर श्रोता । 
					प्रशंसा दिल खोल कर करना, 
					सुनाते हम तुम्हें कविता ।।६।।  |