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तुमसे क्या माँगूँ भगवान
बात एक छोटी सी
भगवान से वार्तालाप
मन में
मेरा संशय

संकलन में-
दिये जलाओ- दूसरा दीपक

 

तुमसे क्या माँगूँ भगवान

तुम से क्या माँगूँ भगवान
अगर मुझे तुम दे दो मेरा
मुँह माँगा वरदान
तुम से क्या माँगूँ भगवान
बहुत बड़ा है क्षेत्र माँग का
इच्छा सकल जगत की
जैसे मरूथल की बालू को
होती तृष्णा जल की
प्रश्न नहीं पर क्या क्या माँगूँ
क्या मैं छोड़ूँ पीछे
असमंजस में खड़ा जोड़ कर
लालच मन में भींचे
अगर मान लो मैंने माँगा
अतुलित सुख आनंद
क्या न मुझे फिर करना होगा
चिंता करना बंद?
क्यों न माँग लूँ ऐसा जीवन
चिंता रहे न पल भर
किंतु छोड़ना चिंता हो तो
छोड़ना होगा सब डर
डर से छुटकारा क्यों माँगूँ
तृष्णा क्यों न छोड़ूँ
संतोषी जीवन की क्यों न
उजली चादर ओढूँ?
मन संतोषी हो तो
जग में सब कुछ एक समान
नहीं धारणा किसी वस्तु की
सब खुशियाँ आसान
वस्तु विशेष भला क्यों माँगूँ
ना कोई वरदान
दिया तुम्हीं ने तो सब कुछ है
बचा न कोई प्रदान
तुमसे क्यों माँगूँ भगवान।

१ दिसंबर २००४

 

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