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अनुभूति में मनीष जोशी की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
उदारीकरण : उपसंहार
तुम नहीं थीं
प्रभात
भटकटइया फूल
शोय शोय

 

तुम नहीं थीं

तुम नहीं थीं
उन दिनों
रोज़ों के दिन
मैं
तुम्हारे बिन यहाँ
कुछ अस्त था कुछ व्यस्त था
ऐसा बना
कैसे कहूँ
सब अनमना
इतने दिनों
तुमसे बिना झगड़े
लड़े कैसे बहा
सीधा साधा
चलता रहा वो दरअसल
सब था अनर्गल
जिस विधा का
अभ्यस्त था
मन था निखट्टू
उन जिन दिनों
जब तुम नहीं थीं 

८ जून २०१५

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