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आँखों की गलियों में

आँखों की गलियों में
आवारा भटकती
मेरी ख़्वाहिशें
अपने पूरे होने की उम्मीद में
बूढी हो गयीं
-०-

दुःख को
पलकों के बाहर बिठा
मैने कुण्डी लगा दी
पर न जाने कैसे
वो अन्दर आ गया
और मेरी आँख
आँसुओं से भर गयी
-0-

चलो सपनो के कुछ बीज
उधर लाएँ
बो दें उन्हें क्यारी बनाके
ताकि लहलहा सके
सपनों की फसल
इन बंजर आँखों में
-०-

एक आँसू
पलकों की झालर पकड़
न जाने कबसे बैठा है गुमसुम
पर गालों पर लुढ़कने से
इंकार करता है
-0-

प्रेम का पंक्षी
घायल था कब से
न तुम जाने
न हमने समझा
उसने दम तोड़
-0-

दूरी लम्हों की
अच्छी होती है पर
समेट लेना
इससे पहले कि
सदियों में बदले

९ जून २०१४

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