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अनुभूति में रघुविन्द्र यादव की रचनाएँ-

कुंडलिया में-
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डाल दिये वनराज ने, हिम्मत के हथियार

संकलन में-
नया साल-
पूरे हों अरमान
मातृभाषा के प्रति- जनभाषा हिंदी बने


 

 

  डाल-दिये-वनराज-ने,-हिम्मत-के-हथियार

डाल दिये वनराज ने, हिम्मत के हथियार।
गीदड़ घुसकर माँद में, गये उसे ललकार।।

जंगल की सरकार ने, खूब किया इंसाफ।
पाँच भेडिय़ों को किया, पाँच साल में माफ।।

लोकतंत्र का हो गया, जंगल तक विस्तार।
गठबंधन सरकार के, मुखिया बने सियार।।

पूर्ण सुरक्षा दे रही, भेड़ों को सरकार।
मुस्तैदी से भेड़िये, उठा रहे हैं भार।।

साँप नेवलों ने किया, समझौता चुपचाप।
पाँच साल हम लूट लें, पाँच साल फिर आप।।

रोटी फिर से आ गई, है बंदर के पास।
कैसे रक्खें बिल्लियाँ, लोकतंत्र से आस ?

वफादार कुत्ते सहें, जंगल में अपमान।
गीदड़-लोमड़ ले रहे, बड़े-बड़े सम्मान।।

जंगल की सरकार ने साध लिया है मौन।
घायल हिरनी पूछती, न्याय करेगा कौन?

चले नहीं कानून का, अब जंगल में राज।
देरी वाले न्याय से, हुई कोढ़ में खाज।।

कायम जब से हो गया, जंगल में गण-राज।
काग बुलन्दी छू रहे, संसद पहुँचे बाज।।

२१ जनवरी २०१३

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