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अनुभूति में सपना मांगलिक की रचनाएँ-

दोहों में-
चंदा तकता चाँदनी
जग के ठेकेदार

 

 

चंदा तकता चाँदनी

चंदा तकता चाँदनी, धरा तके आकाश
सबके दिल में खिल रहे, भीगे प्रेम पलाश

खून आज का हो रहा, लोहे से भी गर्म
नहीं कद्र माँ बाप की, खोई नैना-शर्म

मन्दिर मस्जिद चर्च में, ढूँढा चारों धाम
जो मन खोजा आपना, मिले वहीं पर राम

खोले जब भी मुख मनुष, शब्द प्रेम के बोल
ढाई आखर प्रेम के, लगते हैं अनमोल

शोषित करें गरीब को, नेता भरते कोष
गंगाजल से कब भला, धुलते उनके दोष

धरते धरते आस को, बीती जीवन शाम
क्या जाने लग जाए कब, इन पर पूर्ण विराम

बातों से लौटें नहीं, काले धन के कोष
जनता भूखी मर रही, फैल रहा आक्रोश

पुष्प आजकल वृक्ष पर, बरपाते हैं जुल्म
मित्रों में दुश्मन छुपे, हमें नहीं बस इल्म

दुनिया भर में चल रहा, यह गोरख व्यापार
असली कोने में पड़ा, नकली का बाजार

नेता फिर दिखला रहे, जनता को अंगूर
समझो भैया चाल को, करें नहीं मंजूर

धन दौलत माँगे नहीं, प्रेम वचन का दास
जो बतियावे प्रेम से, वो ही मन का ख़ास

सुमिरन हरि का मैं करूँ, भूलूँ दिन क्या रैन
हरि का दर्शन जो मिले, आये तब ही चैन

लाठी लेकर फिर रहे, गाँधी जी के भक्त
सज्जन को हड़का रहे, दुर्जन को दें तख्त

सुख में सुमिरन कर लिए, जिसने हरि के पाँव
ऐसे सच्चे भक्त को, मिलता हरि का गाँव

१ दिसंबर २०१६

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