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अनुभूति में सुदामा पांडेय 'धूमिल' की रचनाएँ-

कविताओं में--
किस्सा जनतंत्र
खेवली
गाँव
घर में वापसी
चुनाव
दिनचर्या
नगरकथा
प्रस्ताव
भूख
मैमन सिंह
मोचीराम
लोहसाँय
सिलसिला

 

मैमन सिंह

आप चौके में
प्याज काटती हुई बेगम के
रजिया आँसू देखेंगे
और चापलूसी में साबुत लौकी पर
चक्कू फटकारते हुए कहेंगे
ऐसे काटते हैं बहादुर नौजवान
दुश्मन का सिर - ऐसे काटते हैं
भौंचक पत्नी के सामने
युद्ध के पूर्वाभ्यास के लिए
रसोई घर से उत्तम दूसरी जगह नहीं है
फिर आप इतमीनान से नास्ता करेंगे
इसके बाद सड़क पर आवेंगे
जै हिंद न्यूयार्क!
बांगलदेश जै हिंद!!
आमी तोमार भालो बासी - जै हिंद
लेकिन उस वक्त आप क्या करेंगे
जब वापस लौटते हुए गली के मोड़ पर
मैमन सिंह मिलेंगे
खालीहाथ, खाली पेट
क्या आप उन्हें अपने घर लाएँगे?
माना कि ज़हमत उठाएँगे
लेकिन मैमनसिंह सोएँगे कहाँ?
माना कि आपने उसे जबसे चौका दिया है
बिना बच्चे के पांच वर्ष बीतने के बावजूद
उस औरत ने न कभी शिकायत की है,
और न अपने चरित्र पर शक करने का
मौका दिया है।
मैमनसिंह घर में खायेंगे
धर्मशाला में सोयेंगे
सात दिन मैमन सिंह उदास रहेंगे
आप उन्हें सांत्वना देंगे
सहानुभूति के नाम पर
बचे हुए को बाँटने का सुख सहेंगे
लेकिन आँठवें दिन एक चमत्कार होगा
मैमनसिंह मुस्कराएँगे, वे बिना पूछे
आपकी जेब से पैसे निकालेंगे।
और सनीमा चले जाएँगे
नवें दिन आपकी कमीज़ गायब होगी
दसवें दिन आप देखेंगे कि आपकी
सोने की बटन
मैमनसिंह के काज की शोभा
बढ़ा रही है, मैमनसिंह की अंगुली में पड़ी
आपकी अंगूठी आपका मुँह चिढ़ा रही है।
और अब क्या ख्याल है
आज आपको शीशा नहीं मिल रहा है
कल आप पाते हैं कि कंघी में
खांची भर रूसी है, झौवा भर बाल हैं
मैमनसिंह! मैमनसिंह!!
तुम्हें क्या हो गया है
तुम मुझे चिथड़ों की ओर क्यों घसीट रहे हो?
तुम मेरे चमड़े का हल्ला क्यों पीट रहे हो?
मैमनसिंह! तुम मेरी कंघी को
मेरे बालों के खिलाफ़ उकसा रहे हो
तुम मेरी बटनों से खेल रहे हो
मैमनसिंह! तुम मुझे खा रहे हो।
मैमनसिंह तुम! मैमनसिंह!!
साले शरणार्थी!

तुम आदमी नहीं अजदहे हो
इस तरह आप जब अपनी घरऊँ औकात के साथ
ज़मीर की लड़ाई लड़ेंगे
तब केवल जै हिंद नहीं... अपने दिलवालियेपन से निपटने के लिए
आपको दूसरे उत्तर भी ढूँढ़ने पड़ेंगे
और उस वक्त आप क्या करेंगे?
फिलहाल, जब मुहावरा गर्म है,
एक देश को स्वीकृति देना
एक आदमी को स्वीकृति देने से
कठिन नहीं है।

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