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अनुभूति में डॉ. जगदीश गुप्त की कविताएँ-

कवि वही
खिली सरसो
घाटी की चिन्ता
बात रात से
सांझ

गौरव ग्रंथ में-
प्रबंध काव्य- सांझ

संकलन में-
हिम नहीं यह - गाँव में अलाव में

  बात रात से

आँख-सी उजली धुली यह रात
हिम शिखर पर
रश्मियों के पाँव रख कर
बढ़ चली

कहा मैंने -
रुको
मैं भी साथ चलता हूँ
गगन की उस शांत नीली झील के
निस्तब्ध तट पर
बैठ कर बातें करेंगे।

घाटी की चिन्ता

सरिता जल में
पैर डाल कर
आँखें मूँदे, शीश झुकाए
सोच रही है कब से

बादल ओढ़े घाटी।

कितने तीखे अनुतापों को
आघातों को
सहते सहते
जाने कैसे असह दर्द के बाद

बन गई होगी पत्थर
इस रसमय धरती की माटी।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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