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अनुभूति में जानकीवल्लभ शास्त्री की रचनाएँ—

कहानी
कुपथ रथ दौड़ाता जो
ग़म न हो पास
बौराए बादल?

माझी उसको मझधार न कह
मौज
स्याह-सफ़ेद

 

बौराए बादल?

क्या खाकर बौराए बादल?
झुग्गी-झोंपड़ियाँ उजाड़ दीं
कंचन-महल नहाए बादल!

दूने सूने हुए भरे घर
लाल लुटे दृग में मोती भर
निर्मलता नीलाम हो गयी
घेर अंधेर मचाए बादल!

जब धरती काँपी, बड़ बोले-
नभ उलीचने चढ़े हिंडोले,
पेंगें भर-भर ऊपर-नीचे
मियाँ मल्हार गुँजाए बादल!

काली रात, नखत की पातें-
आपस में करती हैं बातें
नई रोशनी कब फूटेगी?
बदल-बदल दल छाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!

२४ अक्तूबर २००७

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