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अनुभूति में मैथिली शरण गुप्त की रचनाएँ-

गीतों में-
नर हो न निराश करो मन को
दोनों ओर प्रेम पलता है
मनुष्यता
निरख सखी ये खंजन आए
शिशिर न फिर गिरि वन में
मुझे फूल मत मारो
प्रतिशोध

 

मुझे फूल मत मारो

मुझे फूल मत मारो
मैं अबला बाला वियोगिनी कुछ तो दया विचारो।
होकर मधु के मीत मदन पटु तुम कटु गरल न गारों
मुझे विकलता तुम्हें विफलता ठहरो श्रम परिहारो।
नही भोगनी यह मैं कोई जो तुम जाल पसारो
बल हो तो सिन्दूर बिन्दु यह यह हर नेत्र निहारो
रूप दर्प कंदर्प तुम्हें तो मेरे पति पर वारो
लो यह मेरी चरण धूलि उस रति के सिर पर धारो।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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