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अनुभूति में नागार्जुन की रचनाएँ-

गीतों में-
उनको प्रणाम
कालिदास सच सच बतलाना
जान भर रहे हैं जंगल मे
पीपल के पत्तों पर

छंदमुक्त में-
बरफ़ पड़ी है
अग्निबीज
बातें
भोजपुर
गुलाबी चूड़ियाँ
सत्य

दोहों में-
नागार्जुन के दोहे

संकलन में-
वर्षा मंगल- बादल को घिरते देखा है
गाँव में अलाव- बरफ़ पड़ी है

  पीपल के पत्तों पर

पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी

नालियों के भीगे हुए पेट पर
पास ही जम रही घुल रही
पिघल रही चाँदनी
पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर--
चमक रही दमक रही
मचल रही चाँदनी
दूर उधर बुर्जों पर उछल रही चाँदनी

आँगन में दूबों पर गिर पड़ी--
अब मगर किस कदर
संभल रही चाँदनी
पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर
नाच रही कूद रही उछल रही चाँदनी
वो देखो सामने
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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