अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अजय तिवारी की रचनाएँ

गीतों में—
कैसे समझाएँ
खालीपन
जीवन - संध्या
धूप का टुकड़ा
सच्चाई
क्षण भर

 

क्षण भर

जीवन कुछ जाता सँवर!
समेट लिया होता नभ को
जो आँखों में
क्षण भर।

हरी घास तो लगी हुई
निर्मल चादर-सी बिछी हुई,
स्पर्श है कोमल किसने जाना
बस भाग-दौड़ ही मची हुई।

सहला लिया होता मृण्मय
जो तृणों को
क्षण भर।

चेहरे पर चेहरे चढ़े हुए
हर ओर मुखौटे मढ़े हुए,
कौन असल और कौन नकल
प्रश्न चिन्ह हैं लगे हुए।

देख लिया होता खुद को
जो दर्पण में
क्षण भर।

पत्थर-पत्थर हैं पुजे हुए
घट पापों के भरे हुए,
इनको धोने की होड़ लगी
गंगा में डुबकी लिए हुए।

डूब लिया होता दिल की
जो तहों तक
क्षण भर।

१४ जुलाई २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter