अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में आनंद कुमार गौरव की रचनाएँ-

गीतों में-
खिड़की से चिपका है दिन
ख्वाब छत पर
चाह स्वर्णिम भोर की
प्रीत पावना सावन
भाव बेग तनमन

 

खिड़की से चिपका है दिन

घर सन्नाटा बहता है
आँगन गुमसुम रहता है

वेदना दहाड़-सी हुई
विवशता पहाड़-सी हुई
बात जोड़ने की अब तो
सर्वथा बिगाड़-सी हुई

आसपास का विकसित भ्रम
निष्ठुरताएँ कहता है

कोंपल शाखों की अनबन
टेसू के लुप्त हुए वन
शब्द के परखने में ही
उलझ गए गीतों के मन

प्रश्न सदा प्रश्न ही रहा
पीड़ा के प्रण सहता है

श्वाँस-श्वाँस रीते सपने
मुझसे सब जीते अपने
आहट भी मौन हो गई
साँकल के बीते बजने

हूँ परम्परा बिछोह की
चटका दर्पण कहता है

२८ नवंबर २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter