| 
 बानी माँग रहे 
अपने सूखे हुए खेत 
फिर पानी माँग रहे, 
बूढ़ों के वारिस 
बच्चे ज्यों 
छानी माँग रहे। 
बादल जी के घर में 
कैसे इतनी देर हुई, 
फटी चादरों के कोने 
ज्यों खोई हुई 
सुई। 
आसों के  
यह बरस इंद्र। 
गुड़धानी माँग रहे 
हम तो अपने दिन से 
लंबी प्यासें साँट रहे, 
घर का बिया 
अधसना आटा 
आशें बाँट रहें। 
मेड़ों-से जम गए 
ओंठ की 
बानी माँग रहे।। 
२५ फ़रवरी २००८ 
                   |