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अनुभूति में अवनीश सिंह चौहान की रचनाएँ-

गीतों में-
खोले अपना खाता
तुम न आए
पिता
मन पतंग
मेरे लिये
रंग-गंध के गाँव में

 

मन पतंग

तन की मन की गोपन चर्चा
उठ भिनसार प्रिया करती है
मन पतंग बन उड़ने लगता
इतनी बात किया करती है

विलग हुई मैना से पूछो
कैसे धीर धरा करती है?
जितनी धीर बाँधती मन में
उतनी पीर सिया करती है।

रंगीली तितली से पूछो
कितनी बार मरा करती है?
जब खिलते है फूल वनों में
कैसे रंग जिया करती है?

बार-बार जैसे जल मछली
अंदर प्रीत भरा करती है
अपने में वह खोई-खोई
खुशबू लिया-दिया करती है

२३ अगस्त २०१०

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