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अनुभूति में बृजेश द्विवेदी अमन की रचनाएँ-

गीतों में-
अंतहीन पथ पर
आदमी अब भीड़ में
बहती रही नदी
बूढ़ा बरगद

माँ चाहे छंदों सा बंधन

 

बहती रही नदी

टीलों से टकराकर गुमसुम
बहती रही नदी।
मेघों की मनमरजी हरदम
सहती रही नदी।

खुशियाँ बाँटी सबको हरदम
नहीं कभी प्रतिदान लिया
अवगाहन करने वाले को
मनचाहा वरदान दिया
परमारथ में धूल पदों की
धोती रही नदी

प्यास बुझाकर उड़े जो पंछी
नहीं लौटकर आये
बाँझ हुईं उम्मीदें उसकी
किसको हाल सुनाएँ
तटबंधों से अपने दिल की
कहती रही नदी।

धार-धार नदिया को होते
देखें खड़े मुहाने
बिन मापे ही थाह अभी तक
लिखते रहे सयाने
रेत सरीखी समय धार में
ढहती रही सदी।

६ अक्तूबर २०१४

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