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अनुभूति में देवेंद्र कुमार की रचनाएँ-

गीतों में-
अँधेरे की व्यथा
एक पेड़ चाँदनी
चाँदी के तार
बौरों के दिन
धूप में
यह अकाल इंद्रधनुष
यह अगहन की शाम
हमको भी आता है
हम ठहरे गाँव के

  हमको भी आता है

पर्वत के सीने से झरता है झरना
हमको भी आता है भीड़ से
गुजरना

कुछ पत्थर कुछ रोड़े
कुछ हंसों के जोड़े
नींदों के घाट लगे
कब दरियाई घोड़े

मैना की पाँखें हैं बच्चों की आँखें हैं
प्यारी है नींद मगर शर्त है
उबरना

खेतों की मेड़ों से
साखू के पेड़ों से
कुछ ध्वनियाँ आती हैं
नदी के थपेड़ों से

वर्दी में सादे में, बाढ़े के इरादे में
आगे पीछे पानी देख के
उतरना

गूँगी है बहरी है
काठ की गिलहरी है
आड़ में मदरसे हैं
सामने कचहही है

बँधे खुले अंगों से, भरपाया रंगों से
डालों के सेब है, सँभाल के
कुतरना

६ फरवरी २०१२

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