अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में गुलाब सिंह  की रचनाएँ—

गीतों में—
अपने ही साए
गीतों का होना
दिन
पेड़ और छाया
फूल पर बैठा हुआ भँवरा

शहरों से गाँव गए
हतप्रभ हैं शब्द

 

 

 

पेड़ और छाया

पेड़ मेरा था मगर
छाया तुम्हारे द्वार पर थी
क्या हुआ भाई मेरे कि
बीच में दीवार कर दी

चाहिए थी धूप दो पल
दो पलों छाया
पेड़ सूरज वही अपने
बीच में से कौन आया

मिटाकर सम्वाद सारे
मौन को लम्बी उमर दी

तनी हरदम रही अपने
अहं की पूरी प्रत्यंचा
ठूँठ ही रिश्ते रहे
खिलने न पाया कोई गुंचा

जय पराजय कुछ न दीखी
दिखा बस केवल समर ही

तीन घर के गाँव में
जलते रहे हैं तीस चूल्हे
जल गयी बारात सारी
अश्व से उतरे न दूल्हे

खोदते रह गए नीवें
उठ न पाया एक घर भी

३१ अक्तूबर २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter