अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में जगत प्रकाश चतुर्वेदी की रचनाएँ-

गीतों में-
आएगा कुछ बादल जैसा
जलती हुई कोई नदी
वृक्ष हैं किनारों के
सूर्य की पाती

  वृक्ष है किनारों के

और हम दो-चार दिन मिल लें
वृक्ष हैं हम
अब किनारों के!

बंद होंगी जब
हवाओं के लिए भी सीढ़ियाँ
क्या हमें पहचान लेंगी
कल सुबह की पीढ़ियाँ

डाल पर कुछ और हम खिल लें
फूल हम
अंतिम बहारों के!

आ रही डोली
दिखाई दे रहे मस्तूल
आज की मीनार है यह
सिर्फ़ कल की धूल

पास आती आहटें सुन लें
चल पड़े हैं
पग कहारों के!

साथ थे हम जिस तरह
पंखुरी गुलाबों की
थी यही तस्वीर
अपने चंद ख़्वाबों की

एक पल सपने वही बुन लें
हम दिये
बुझते सितारों के!

१६ नवंबर २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter